Shri Janaki Vallabh Mandir - Didwana

Didwana - Janaki Nath Mandir

 

राजस्थान के नागौर जिले में स्थित “उपकाशी” के नाम से अपनी विशिष्ट पहचान रखने वाला एक नगर जिसको वर्तमान में “डीडवाना” के नाम से पहचाना जाता है | डीडवाना नगर अनेक धर्म संस्कृति व सम्प्रदायों को अपने आपमें समेटे हुए है, जहाँ सभी धर्मों के लोग आपसी भाईचारे के साथ निवास करते है इसी डीडवाना नगर में सनातन संस्कृति के प्रहरी के रूप में भक्त वत्सल भगवान श्री जानकीवल्लभजी का दिव्य मंगल विग्रह पांचसो पचास वर्ष प्राचीन (५५०) “श्री आदि सिद्ध स्थान नागोरिया मठ” में स्थापित है | जहाँ "श्री राम जय राम जय जय राम " तारक मंत्र संकीर्तन के रूप में  विगत  ७५ वर्षों से  अखंड और  अबाधगति (२४ X  ७) से चालू है | नागोरिया मठ डीडवाना राजस्थान का प्राचीन धर्मस्थल है , इस मठ के पूर्वाचार्यों का त्याग व तपस्यामय जीवन लोक कल्याण हेतु समर्पित रहा , इस मठ के अनुयायी , राजस्थान , मध्य  प्रदेश, कर्णाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, बंगाल , महारष्ट्र , गोवा , उत्तर प्रदेश, गुजरात,  देल्ही, अरुणाचल प्रदेश ऐसे सम्पूर्ण भारतवर्ष में फैले हुए है | इसके साथ ही विदेश में भी इस मठ के शिष्य है इनमे प्रमुखता से  अमेरिका , हांग कांग , मलेशिया  , ऑस्ट्रेलिया में भी है | इस मठ की भारतवर्ष में अनेक जगह शाखाएं है जहाँ भारतीय संस्कृति और परिवेश के अनुरूप   शिक्षा, स्वास्थ्य, अन्नक्षेत्र , अध्यात्म , गौ सेवा, जीव दया,  प्राकर्तिक आपदा सहायता, संस्कृत शिक्षा का  प्रचार, समय समय पर स्वास्थ्य, शिविर का आयोजन, और सनातन संस्कृति के अनुसार वानप्रस्थ आश्रम की व्यवस्था है. आश्रम के कई स्थानों पर  यात्रियों की सुविधा के लिए धर्मशाला  भी है |


जोधपुर नरेश के द्वारा इस मठ को अनेक गावों की जागीर का अधिकार दिया हुआ था, साथ में मठ के संचालन हेतु हज़ारों  एकड़ भूमि भी दी हुई थी , वैकुंठवासी स्वामीजी श्री बालमुकुन्दाचार्यजी महाराज ने डीडवाना के आस पास मंडावासनी, जानकीपुरा नामक  गांव की स्थापना की और मठ की वह जमीन किसानों के रहने और खेती करने के लिए बाँट दी | सालासरजी में भी मठ की जो भूमि  थी ४५० बीघा उसको स्वामीजी महाराज ने आने वाले यात्रियों की सुविधा और सालासरजी गांव के उत्थान हेतु बसस्टैंड के लिए दान में दे दी | इसी मठ के आचार्य वैकुंठवासी स्वामीजी श्री केशवचार्य जी महाराज ने अपने जीवनकाल में अनेक सामाजिक, आध्यात्मिक और सर्व धर्म सद्भाव के कई कार्य किये, इसी डीडवाना शहर में १२ अप्रैल १९९२ को में एक विलक्षण, अद्भुत व अभूतपूर्व आयोजन हुआ जिसका नाम था “शहर-सारिणी” इस आयोजन में सभी धर्मों (हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई) के लोग आपसी वैमनस्य भुला कर एक जाजम पर बैठकर महाराजश्री के द्वारा आयोजित शहर सारिणी  की भोजन प्रसादी  सभी ने बड़े प्रेम से ग्रहण किये, डीडवाना नगर उस दिन को आज भी को प्रसाद पहुँचाया गया , उस ज़माने में इस शहर सारिणी की खबर बी बी सी न्यूज़ जो लंदन से प्रसारित की गयी थी,  मुस्लिम धर्म के लोगों ने अपने शहर क़ाज़ी उस्मानीजी के साथ इस विलक्षण कार्यक्रम की अभूतपूर्व सफलता के पश्चात श्री स्वामीजी केशवाचार्यजी महाराज को सिक्कों से तोलकर अपना प्रेम प्रगट किया |

 

   इसी मठ की परंपरा के तीसरी पीढ़ी के आचार्य  स्वामीजी श्री श्रीनिवासाचार्यजी महाराज एक विलक्षण वक्ता व साधक थे. इन्होने सम्पूर्ण भारतवर्ष में सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति का , अपनी विलक्षण ओजस्वी वाणी में भागवत कथा और वाल्मीकि रामायण के जरिये  प्रचार प्रसार किया , आप श्री की विलक्षण प्रतिभा से प्रभावित होकर भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री रमेशचन्द्रजी लाहोटी इस मठ के अनुयायी बने | महाराज श्री की प्रेरणा से ही मौलासर के नगर सेठ श्री सोमानीजी  की पत्नी श्री मनोरमाबाई सोमनीजी ने राजस्थान के इन गांवों में,  मौलासर, डीडवाना, बछराजव्यास ,लादडियां, मौलड़ुँगा, डावदा जैसी अनेक जगह शिक्षा हेतु विद्यालय , छात्रावास, और चिकित्सा हेतु औषधालय बनवाए,  महाराजश्री का अल्पायु में ही देहावसान होने के बाद सोलहवें आचार्य के रूप में पंद्रह वर्ष की अल्पायु में ही सं २००० में वर्तमान स्वामीजी श्री श्री विष्णुप्रपन्नाचार्यजी मठाधिपति बनाकर जिम्मेदारी सौंपी . महाराजश्री ने अपना अध्यन पूर्ण कर इन सारी जिमींदारियों को बखूबी संभाला . महाराजश्री के नेतृत्व और अध्यक्षता में मठ और मठ के अंतर्गत आने वाले सभी स्थानो का चहुमुखी विकास हो रहा है |